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पैतृक सम्पत्ति के नियमों में बड़ा बदलाव! अब बेटा-बेटी दोनों को मिलेगा बराबर हक

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New law on Ancestral property in India

पारिवारिक संपत्ति के अधिकार हमेशा से समाज में संवेदनशील विषय रहे हैं। खासकर बेटियों को पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलने को लेकर कई वर्षों तक विवाद चलता रहा। लेकिन 2025 में इस दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं, जो बेटा-बेटी दोनों को संपत्ति पर बराबर हक देते हैं। अब वह दिन गए जब केवल बेटों को ही परिवार की संपत्ति में अधिकार मिलता था। यह बदलाव महिलाओं के अधिकारों को सुदृढ़ करने और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाला माना जा रहा है।

इस नए नियम की वजह से अब बेटियों को भी उनके पैतृक अधिकारों का समान लाभ मिलेगा। चाहे वह अविवाहित हों या शादीशुदा, सबको बराबर हिस्सा मिलेगा। इसके साथ ही, उत्तराधिकार के मामलों में पारदर्शिता बढ़ाने और विवादों को कम करने के लिए कानून और प्रक्रिया सरल बनाई गई है। यह जानकारी भारतीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सरकार के नवीनतम निर्देशों पर आधारित है।

पैतृक सम्पत्ति के प्रमुख नियम – बेटा-बेटी को समान अधिकार

पैतृक सम्पत्ति का मतलब वह संपत्ति है जो परिवार की कई पीढ़ियों से चली आ रही हो। पहले इस संपत्ति पर केवल बेटों का अधिक हक माना जाता था, लेकिन हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 में हुए संशोधन ने बेटियों को भी जन्म से ही बराबर का सह-हकदार बनाया। सुप्रीम कोर्ट ने लगातार इस अधिकार को मजबूत किया है और 2025 में भी इसे स्पष्ट किया गया कि बेटा और बेटी दोनों को पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति में बराबर हिस्सा मिलेगा।

स्व-अर्जित संपत्ति, जो व्यक्ति ने खुद कमाई और अर्जित की हो, उस पर मालिक का पूरा नियंत्रण होता है। ऐसा होने पर पिता अपनी स्व-अर्जित संपत्ति में वसीयत द्वारा किसी एक बच्चे को अधिक हिस्सा दे सकते हैं, लेकिन पैतृक संपत्ति में ऐसा संभव नहीं। यदि वसीयत न हो तो संपत्ति सभी वारिसों में बराबर बंटेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात पर जोर दिया है कि बेटियों को पैतृक संपत्ति में हिस्सा देना जरूरी है और अब पिता सिर्फ एक बेटे को पूरी सम्पत्ति नहीं दे सकते। इसके अलावा, किसी भी संयुक्त परिवार की पैतृक संपत्ति को बेचने या हस्तांतरित करने के लिए सभी सदस्यों की सहमति अनिवार्य हो गई है, जिससे पारिवारिक विवाद कम होंगे।

पैतृक संपत्ति के नियमों का सारांश

विषयविवरण
पैतृक संपत्ति का अधिकारसभी बेटों-बेटियों को जन्म से बराबर हक
स्व-अर्जित संपत्तिवसीयत होने पर पिता अपनी मर्जी से दे सकता है
बेटियों का हकअविवाहित या शादीशुदा सभी को बराबर हिस्सा
वसीयत का महत्वस्व-अर्जित संपत्ति का अलग से वितरण संभव
विवाद निवारण प्रक्रियासरल, तेज और कम खर्चीली प्रक्रिया
संयुक्त संपत्ति की बिक्रीसभी सदस्यों की सहमति जरूरी
सुप्रीम कोर्ट के फैसलेबेटियों को बराबर हक देना अनिवार्य माना गया
परिवार के बंटवारेतीन पीढ़ियों तक का बंटवारा 5000 रुपये शुल्क में

बेटा-बेटी को बराबर हक से जुड़े मुख्य फायदे

  • बेटियों को अब पिता की संपत्ति में पूरी हिस्सेदारी मिलती है, जो पहले संभव नहीं था।
  • पारिवारिक विवाद कम होने लगेंगे क्योंकि सभी वारिसों के अधिकार स्पष्ट कर दिए गए हैं।
  • संपत्ति का बंटवारा आसान और कम खर्चीला हो गया है, जिससे ज़मीन-जायदाद के मामले जल्दी निपटेंगे।
  • महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त होंगी और सामाजिक बराबरी को बल मिलेगा।
  • स्व-अर्जित और पैतृक संपत्ति के बीच फर्क स्पष्ट होना कानून को समझने में मदद करेगा।

परंतु कुछ बातें ध्यान में रखने योग्य हैं:

  • पिता अगर अपनी स्व-अर्जित संपत्ति को किसी एक बच्चे को देना चाहते हैं, तो वसीयत बनाना जरूरी होगा।
  • पैतृक संपत्ति पर कानून की स्थिरता के कारण सभी बच्चो का हिस्सा सुरक्षित रहेगा।
  • विवाद होने पर विशेषज्ञ कानूनी सलाह लेना आवश्यक है।
  • सरकारी नियमों और अदालत के फैसलों की जानकारी रखनी और उनका पालन करना जरूरी है।

नया संपत्ति कानून और बेटियों का अधिकार: एक सारणीबद्ध अवलोकन

बिंदुपहले का नियमअब नया बदलाव 2025
बेटियों का अधिकारकई बार सीमित या कोई अधिकार नहींपूरा बराबर हिस्सा मिलता है
वसीयत का महत्वसीमित उपयोगस्व-अर्जित संपत्ति पर जरूरी
परिवार की संपत्ति बंटवारामहंगा और विवादास्पदसरल, कम शुल्क में और तेज प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट का रुखबेटियों के अधिकार धीरे-धीरे मिलेबेटियों को बराबर अधिकार देने पर जोर
संपत्ति की बिक्रीबिना सहमति विवादसभी सदस्यों की सहमति अनिवार्य

निष्कर्ष: पैतृक संपत्ति के नियमों में यह बदलाव बेटियों और बेटों दोनों के लिए न्यायसंगत माहौल बनाएगा। संपत्ति पर बराबर हक मिलना समाज में लैंगिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। हालांकि स्व-अर्जित संपत्ति के मामले में अभी भी मालिक का अधिकार प्रमुख रहेगा, लेकिन पारिवारिक हिस्सेदारी में बेटियों के अधिकार मजबूत हैं।

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